Monday, December 11, 2017

शरण में आया तेरी राम जी




शरण में आया तेरी राम जी


संग मेरे घूमते थे, संग मेरे खाते
करते थे, मुझसे वे बड़ी बड़ी बातें
दुर्दिन में मेरे वो   ,आये नहीं काम जी
अब तो शरण में ,मैं आया तेरी राम जी

यार दोस्त देखे मैनें, देखे मैनें नाते
परे मेरे जाती हैं ,दुनिया की बातें
बचपन ,जबानी बीती , आयी अब शाम जी
अब तो शरण में ,मैं आया तेरी राम जी

काब्य प्रस्तुति : 
मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, October 18, 2017

दीवाली , उदासी और मैं





दीवाली , उदासी और मैं

वह  हमसे बोले हँसकर कि आज है दीवाली
उदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं ताली

मैं कैसें उनसे बोलूँ  कि जेब मेरी ख़ाली
जब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ ताली

वह  बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुम
देखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुम

इन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते हम
जिसके ना पास दौलत उससे न वोलते  हम

मैंने जो देखा उनको खड़ें वह   मुस्करा रहे थे
दीवाली के दिन तो बह दौलत लुटा रहे थे

मैनें कहा ,सच्चाई मेरी पूजा इंसानियत से नाता
तुम जो कुछ भी कह रहे हो ,नहीं है मुझको भाता

वह   बोले हमसे हसकर ,कहता हूँ वह   तुम सुन लो
दुनियां में मिलता सब कुछ खुशियों से दामन भर लो

बातों में है क्या रक्खा मौके पे बात बदल लो
पैसों कि खातिर दुनियां में सब से तुम सौदा कर लो

वह  वोले हमसे हंसकर ,हकीकत भी तो यही है
इंसानों क़ी है दुनिया पर इंसानियत नहीं है

तुमको लगेगा ऐसा कि सब आपस में मिले हैं
पर ये न दिख सकेगा दिल में शिक्बे और गिले हैं

मैनें जो उनसे कहा क्या ,क्या कह जा रहे हैं
जो कुछ भी तुमने बोला ना हम समझ पा रहे हैं

मेरी नजर से देखो दुनियाँ  में प्यार ही मिलेगा
दौलत का नशा झूठा पल भर में ये छटेगा

दौलत है आनी जानी ये तो तो सब ही जानतें हैं
ये प्यार भरी दुनियां बस हम प्यार मानतें है

प्रेम के दीपक, तुम जब हर दिल में जलाओगे
सुख शांति समृधि की सच्ची दौलत तुम पाओगे

वह  बात सुन कर बोले ,यहाँ हर रोज है दीवाली
इन्सान की इस दुनियां का बस इश्वर है माली

वह   मुस्करा के बोले अब हम तो समझ गएँ हैं
प्रेम के दीपक भी मेरे दिल में जल गए हैं




प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना  




Thursday, September 7, 2017

अपनी ढपली, राग भी अपना


 





प्यार मुहब्बत रिश्तों को अब ढोना किसको   भाता है
अपनी ढपली, राग भी अपना सबको यही सुहाता है 


मदन मोहन सक्सेना


Monday, January 23, 2017

२६ जनबरी आने बाली है

२६ जनबरी आने बाली है 
सरकारी अमला जोर शोर से तैयारी कर रहा है
स्कूल के बच्चे और टीचर अपने तरह से जुटे हुए हैं
आजादी का पर्ब मनाने के लिए
कुछ लोग छुट्टी जाकर
लॉन्ग वीकेंड को मनाने को लेकर उत्साहित हैं
छोटी मुनिया , छोटू
ये सोच कर बहु खुश है कि
पेपर और प्लास्टिक के झंडे से अधिक पैसे मिलेंगें
सोसाइटी ऑफिस के लोग
देश भक्ति से युक्त गानो की सी डी और ऑडियो को खोजने में ब्यस्त हैं
कि पुरे दिन इन गानो के बजाना होगा
बच्चे लोग इस बात से खुश है कि
कल स्कूल में पढ़ाई नहीं होगी
ढेर सारा मजा और  मिठाई अलग से मिलेगी
लेकिन
भारत  काका इस बात से खिन्न हैं
कि अपनी पूरी जिंदगी सेना में खपाने के बाद भी
सरकार उनकी सुध लेने को तैयार नहीं है (एक रैंक एक पेंशन)
अपनी आँख और खूबसूरती खो चुकी
भारती ये सोचकर परेशान है कि
आधी आबादी को जीने का बराबरी का हक़ कब मिलेगा
और मिलेगा भी या नहीं
कुछ आशाबादी लोग
अब भी इस आशा में है कि
कल प्रधानमंत्री शायद
कुछ ऐसा कर दें कि
उनकी जिंदगी में अच्छे दिन आ जाये
और बे भी
आजाद भारत
के
आजाद नागरिक के रूप में
अपना जीबन
बेहतर ढंग से जी सकें














मदन मोहन सक्सेना

Thursday, December 29, 2016

नूतन बर्ष २०१७ आप सबको मंगलमय हो


मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..


मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलत
तमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरत
सदा मिलती रहे शोहरत  और रोशन नाम तेरा हो
ग़मों का न तो साया हो  निशा में ना  अँधेरा हो




नूतन बर्ष २०१७ आप सबको मंगलमय हो
 

मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, November 1, 2016

अमाबस की अंधेरी में ज्यों चाँद निकल आया है






तुम्हारा साथ ही मुझको करता मजबूर जीने को 
तुम्हारे बिन अधूरे हम बिबश हैं  जहर पीने को 
तुम्हारा साथ पाकर के दिल ने ये ही  पाया है
अमाबस की अंधेरी में ज्यों चाँद निकल आया है 


मदन मोहन सक्सेना

Thursday, October 27, 2016

चलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें






बह हमसे बोले हँसकर कि आज है दीवाली
उदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं ताली
मैं कैसें उनसे बोलूँ  कि जेब मेरी ख़ाली
जब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ ताली
बह  बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुम
देखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुम
इन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते हम
जिसके ना पास दौलत उससे न बोलते हम
मैंने जो देखा उनको खड़ें बह  मुस्करा रहे थे
दीवाली के दिन तो बह दौलत लुटा रहे थे
मैनें कहा ,सच्चाई मेरी पूजा इंसानियत से नाता
तुम जो कुछ भी कह रहे हो ,नहीं है मुझको भाता
वह   बोले हमसे हसकर ,कहता हूँ बह  तुम सुन लो
दुनियां में मिलता सब कुछ खुशियों से दामन भर लो
बातों में है क्या रक्खा मौके पे बात बदल लो
पैसों कि खातिर दुनियां में सब से तुम सौदा कर लो
वह  बोले हमसे हंसकर ,हकीकत भी तो यही है
इंसानों क़ी है दुनिया पर इंसानियत नहीं है
तुमको लगेगा ऐसा कि सब आपस में मिले हैं
पर ये न दिख सकेगा दिल में शिक्बे और गिले हैं
मैनें जो उनसे कहा क्या ,क्या कह जा रहे हैं
जो कुछ भी तुमने बोला ना हम समझ पा रहे हैं

मेरी नजर से देखो दुनियाँ  में प्यार ही मिलेगा
दौलत का नशा झूठा पल भर में ये छटेगा
दौलत है आनी जानी ये तो तो सब ही जानतें हैं
ये प्यार भरी दुनियां बस हम प्यार मानतें है
प्रेम के दीपक, तुम जब हर दिल में जलाओगे
सुख शांति समृधि की सच्ची दौलत तुम पाओगे
वह  बात सुन कर बोले ,यहाँ हर रोज है दीवाली
इन्सान की इस दुनियां का बस इश्वर है माली
बह  मुस्करा के बोले अब हम तो समझ गएँ हैं
प्रेम के दीपक भी मेरे दिल में जल गए हैं

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दिवाली का पर्व है फिर अँधेरे में हम क्यों रहें
चलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें


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दिवाली का पर्व है अँधेरा अब नहीं भाता मुझे
आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला  लिए

दीपाबली शुभ हो


 

चलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें

मदन  मोहन सक्सेना  


 

Wednesday, October 26, 2016

मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार



मंगलमय हो आपको दीपों  का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..

मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलत
तमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरत
सदा मिलती रहे शोहरत  ,रोशन नाम तेरा हो
ग़मों का न तो साया हो, निशा में न अँधेरा हो

दिवाली आज आयी है, जलाओ प्रेम के दीपक
जलाओ प्रेम के दीपक  ,अँधेरा दूर करना है
दिलों में जो अँधेरा है ,उसे हम दूर कर देंगें
मिटा कर के अंधेरों को, दिलों में प्रेम भर देंगें

मनाएं हम तरीकें से तो रोशन ये चमन होगा
सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा  ये बतन होगा
धरा अपनी ,गगन अपना, जो बासी  बो भी अपने हैं
हकीकत में बे बदलेंगें ,दिलों में जो भी सपने हैं


मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, September 20, 2016

आखिर कब तक


आखिर कब तक

फिर एक बार देश ने आंतकी हमला झेला
फिर एक बार कई सैनिक शहीद हो गए
 फिर एक बार परिबारों ने अपनोँ  को खोने का दंश झेला
फिर एक बार गृह , रक्षा मंत्री ने घटना स्थल का दौरा किया
फिर एक बार मंत्रियों ने प्रधान मंत्री को रिपोर्ट दी
फिर एक बार हाई लेवल मीटिंग की गयी  फिर एक बार
फिर एक बार प्रधान मंत्री ने राष्ट्रपति को अबगत कराया
फिर एक बार सभी दलों ने घटना की निंदा की
 फिर एक बार मीडिया में चर्चा हुयी
फिर एक बार पाक को अलग थलग करने की बात की गयी
फिर एक बार पाक से ब्यापारिक ,द्विपक्षीय रिश्तें ख़त्म करने की धमकी दी गयी
फिर एक बार पाक से ट्रैन और बस सेवा बंद करने की बात की गयी
फिर एक बार प्रधान मंत्री ने देश को भरोसा दिलाया कि  गुनाहगार को बख्शा नहीं जायेगा
और
फिर
फिर फिर
फिर फिर फिर
शहीद परिबारों ने कठोर कार्यबाही की मांग की।

 मदन मोहन सक्सेना







Monday, August 22, 2016

अर्थ का अनर्थ (अब तो आ कान्हा जाओ) जन्माष्टमी बिशेष





अब तो आ कान्हा  जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुए 
 दुःख सहने को भक्त तुम्हारे आज सभी अभिशप्त हुए 
नन्द दुलारे कृष्ण कन्हैया  ,अब भक्त पुकारे आ जाओ 
प्रभु दुष्टों का संहार करो और  प्यार सिखाने आ जाओ 













अर्थ का अनर्थ
 
एक रोज हम यूँ ही बृन्दावन गये
भगबान कृष्ण हमें बहां मिल गये
भगवान बोले ,बेटा मदन क्या हाल है ?
हमने कहा दुआ है ,सब मालामाल हैं

कुछ देर बाद हमने ,एक सवाल कर दिया
भगवान बोले तुमने तो बबाल कर दिया
सवाल सुन करके बो कुछ लगे सोचने
मालूम चला ,लगे कुछ बह खोजने

हमने उनसे कहा ,ऐसा तुमने क्या किया ?
जिसकी बजह से इतना नाम कर लिया
कल तुमने जो किया था ,बह ही आज हम कर रहे
फिर क्यों लोग , हममें तुममें भेद कर रहे

भगवान बोले प्रेम ,कर्म का उपदेश दिया हमनें
युद्ध में भी अर्जुन को सन्देश दिया हमनें
जब कभी अपनों ने हमें दिल से है पुकारा
हर मदद की उनकी ,दुष्टों को भी संहारा

मैनें उनसे कहा सुनिए ,हम कैसे काम करते है
करता काम कोई है ,हम अपना नाम करते हैं
देखकर के दूसरों की माँ बहनों को ,हम अपना बनाने की सोचा करते
इसी दिशा में सदा कर्म किया है,  कल क्या होगा  ,ये ना सोचा करते

माता पिता मित्र सखा आये कोई भी
किसी भी तरह हम डराया करते
साम दाम दण्डं भेद किसी भी तरह
रूठने से उनको मनाया करते

बात जब फिर भी नहीं है बनती
कर्म कुछ ज्यादा हम किया करतें
सजा दुष्टों को हरदम मिलती रहे
ये सोचकर कष्ट हम दिया करते 

मार काट लूट पाट हत्या राहजनी
अपनें हैं जो ,मर्जी हो बो करें
कहना तो अपना सदा से ये है
पुलिस के दंडें से फिर क्यों डरे

धोखे से जब कभी बे पकड़े गए
पल भर में ही उनको छुटाया करते
जब अपनें है बे फिर कष्ट क्यों हो
पल भर में ही कष्ट हम मिटाया करते

ये सुनकर के भगबान कहने लगे
क्या लोग दुनियां में इतना सहने लगे
बेटा तुने तो अर्थ का अनर्थ कर दिया
ऐसे कर्मों से जीवन अपना ब्यर्थ कर दिया 

तुमसे कह रहा हूँ मैं हे पापी मदन
पाप अच्छे कर्मों से तुमको डिगाया करेंगें
दुष्कर्मों के कारण हे पापी मदन
हम तुम जैसों को फिर से मिटाया करेंगें 



अर्थ का अनर्थ (अब तो आ कान्हा  जाओ) 
 जन्माष्टमी बिशेष
 
मदन मोहन सक्सेना