वह हमसे बोले हँसकर कि आज है
दीवाली
उदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा
नहीं ताली
मैं कैसें उनसे बोलूँ कि जेब मेरी
ख़ाली
जब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ ताली
वह बोले मुस्कराके धन से क्यों न
खेलते तुम
देखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते
तुम
इन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते हम
जिसके ना पास दौलत उससे न वोलते हम
मैंने जो देखा उनको खड़ें वह मुस्करा रहे थे
दीवाली के दिन तो बह दौलत लुटा रहे थे
मैनें कहा ,सच्चाई मेरी पूजा इंसानियत से
नाता
तुम जो कुछ भी कह रहे हो ,नहीं है मुझको भाता
वह बोले हमसे हसकर ,कहता हूँ वह तुम सुन लो
दुनियां में मिलता सब कुछ खुशियों से दामन भर
लो
बातों में है क्या रक्खा मौके पे बात
बदल लो
पैसों कि खातिर दुनियां में सब से तुम सौदा
कर लो
वह वोले हमसे हंसकर ,हकीकत भी तो यही है
इंसानों क़ी है दुनिया पर इंसानियत नहीं है
तुमको लगेगा ऐसा कि सब आपस में मिले
हैं
पर ये न दिख सकेगा दिल में शिक्बे और गिले
हैं
मैनें जो उनसे कहा क्या ,क्या कह जा रहे हैं
जो कुछ भी तुमने बोला ना हम समझ पा रहे हैं
मेरी नजर से देखो दुनियाँ में प्यार ही
मिलेगा
दौलत का नशा झूठा पल भर में ये छटेगा
दौलत है आनी जानी ये तो तो सब ही जानतें
हैं
ये प्यार भरी दुनियां बस हम प्यार मानतें है
प्रेम के दीपक, तुम जब हर दिल में
जलाओगे
सुख शांति समृधि की सच्ची दौलत तुम पाओगे
वह बात सुन कर बोले ,यहाँ हर रोज है दीवाली
इन्सान की इस दुनियां का बस इश्वर है माली
वह मुस्करा के बोले अब हम तो समझ गएँ हैं
प्रेम के दीपक भी मेरे दिल में जल गए हैं
मदन मोहन सक्सेना