मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..
मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलत
तमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरत
सदा मिलती रहे शोहरत ,रोशन नाम तेरा हो
ग़मों का न तो साया हो, निशा में न अँधेरा हो
दिवाली आज आयी है, जलाओ प्रेम के दीपक
जलाओ प्रेम के दीपक ,अँधेरा दूर करना है
दिलों में जो अँधेरा है ,उसे हम दूर कर देंगें
मिटा कर के अंधेरों को, दिलों में प्रेम भर देंगें
मनाएं हम तरीकें से तो रोशन ये चमन होगा
सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा ये बतन होगा
धरा अपनी ,गगन अपना, जो बासी बो भी अपने हैं
हकीकत में बे बदलेंगें ,दिलों में जो भी सपने हैं
मदन मोहन सक्सेना
आज यानि शुक्रबार दिनांक नवम्बर छह दो हज़ार पंद्रह ,आज के तीन दिन बाद को पुरे भारत बर्ष में
धनतेरस मनाई जाएगी। धनतेरस के दिन सोना, चांदी के अलावा बर्तन खरीदने की
परम्परा है। इस पर्व पर बर्तन खरीदने की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसका कोई
निश्चित प्रमाण तो नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि जन्म के समय
धन्वन्तरि के हाथों में अमृत कलश था। इस अमृत कलश को मंगल कलश भी कहते हैं
और ऐसी मान्यता है कि देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने इसका निर्माण किया
था। यही कारण है आम जन इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं। आधुनिक युग की
तेजी से बदलती जीवन शैली में भी धनतेरस की परम्परा आज भी कायम है और समाज
के सभी वर्गों के लोग कई महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी के लिए पूरे साल इस
पर्व का बेसब्री से इंतजार करते हैं। हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की
त्रयोदशी केदिन धन्वतरि त्रयोदशी मनायी जाती है। जिसे आम बोलचाल में
‘धनतेरस’ कहा जाता है। यह मूलत: धन्वन्तरि जयंती का पर्व है और आयुर्वेद के
जनक धन्वन्तरि के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। आने वाली पीढियां
अपनी परम्परा को अच्छी तरह समझ सकें। इसके लिए भारतीय संस्कृति के हर पर्व
से जुडी कोई न कोई लोक कथा अवश्य है। दीपावली से पहले मनाए जाने वाले
धनतेरस पर्व से भी जुडी एक लोककथा है, जो कई युगों से कही, सुनी जा रही है।
पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि
देवता और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने
हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम पीयूषपाणि
धन्वन्तरि विख्यात हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है। परम्परा
के अनुसार धनतेरस की संध्या को मृत्यु के देवता कहे जाने वाले यमराज के
नाम का दीया घर की देहरी पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की
जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं।
देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से
प्रेरित है।
यम के नाम से दीया निकालने के बारे में भी एक पौराणिक कथा है, एक बार राजा
हिम ने अपने पुत्र की कुंडली बनवायी। इसमें यह बात सामने आयी कि शादी के
ठीक चौथे दिन सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। हिम की पुत्रवधू को जब
इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया कि वह हर हाल में अपने पति को यम के
कोप से बचाएगी। शादी के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर
और सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और खुद
रात भर बैठकर उसे गाना और कहानी सुनाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए। रात के
समय जब यम सांप के रूप में उसके पति को डंसने आए तो वह सांप आभूषणों के
पहाड़ को पार नहीं कर सका और उसी ढ़ेर पर बैठकर गाना सुनने लगा। इस तरह
पूरी रात बीत गई और अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। इस तरह उसने अपने पति की
जान बचा ली। माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख, समृद्धि के लिए धनतेरस
के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके
परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान
धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है ‘पहला सुख निरोगी
काया, दूजा सुख घर में माया’ इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व
दिया जाता है, जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है। धनतेरस के दिन
सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के तथा आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना
सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है। मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में
भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते
हैं। दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है इसलिए इस दिन अब
बर्तनों और आभूषणों के अलावा वाहन मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं।
वर्तमान समय में देखा जाए तो मध्यम वर्गीय परिवारों में धनतेरस के दिन वाहन
खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन ये लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं।
कई लोग तो इस दिन कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं। रीति रिवाजों
से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ
उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते
हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का
पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा
को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।
धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा )
मदन मोहन सक्सेना