मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ
Wednesday, July 31, 2013
मुक्तक (किस्मत)
मुक्तक (किस्मत)
रोता नहीं है कोई भी किसी और के लिए
सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं
प्यार की दौलत को कभी छोटा न समझना तुम
होते है बदनसीब ,जो पाकर इसे खोते हैं
मुक्तक प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
1 comment:
Sadhana Vaid
September 5, 2013 at 6:43 AM
वाह ! बहुत खूब !
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