मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ
Monday, September 28, 2015
मुक्तक (जान)
मुक्तक (जान)
ये जान जान कर जान गया ,ये जान तो मेरी जान नहीं
जिस जान के खातिर जान है ये, इसमें उस जैसी शान नहीं
जब जान वह मेरी चलती है ,रुक जाते हैं चलने बाले
जिस जगह पर उनकी नजर पड़े ,थम जाते हैं मय के
प्याले
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
1 comment:
Ananya
September 28, 2015 at 8:46 AM
Great Post.. Thanks for Sharing !
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