मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ
Thursday, September 7, 2017
अपनी ढपली, राग भी अपना
प्यार मुहब्बत रिश्तों को अब ढोना किसको भाता है
अपनी ढपली, राग भी अपना सबको यही सुहाता है
मदन मोहन सक्सेना
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