Monday, August 19, 2013

ये दुनिया


ये दुनिया

ये पैसों की दुनिया ये काँटों की दुनिया
यारों ये दुनिया जालिम बहुत है
अरमानो की माला मैनें जब भी पिरोई
हमको ये दुनिया तो माला पिरोने नहीं देती..

ये गैरों की दुनियां ये काँटों की दुनिया
दौलत के भूखों और प्यासों की दुनिया
सपनो के महल मैंने जब भी संजोये
हमको ये दुनिया तो सपने संजोने नहीं देती..

जब देखा उन्हें और उनसे नजरें मिली
अपने दिल ने ये माना की हमको दुनिया मिली
प्यार पाकर के जब प्यारी दुनिया बसाई
हमको ये दुनिया तो उसमें भी सोने नहीं देती..

ये काँटों की दुनिया -ये खारों की दुनिया
ये बेबस अकेले लाचारों की दुनिया
दूर रहकर उनसे जब मैं रोना भी चाहूं
हमको ये दुनिया अकेले भी रोने नहीं देती..

ये दुनिया तो हमको तमाशा ही लगती
हाथ अपने   हमेशा निराशा ही लगती
देख दुनिया को जब हमने खुद को बदला
हमको ये दुनिया तो बैसा भी होने नहीं देती...

काब्य प्रस्तुति : 
मदन मोहन सक्सेना

4 comments:

  1. दुनिया तो ऐसी ही है... और हमें इन भी इसी दुनिया में है!

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    1. दुनिया तो ऐसी ही है... और हमें रहना भी इसी दुनिया में है!

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  2. ये दुनिया, ये दुनिया, हाय हमारी ये दुनिया
    शैतानों की बस्ती है, यहां ज़िन्दगी सस्ती है

    राज ये डर का, मौत है यहां की रानी
    कदम-कदम पे, ज़ोर-ज़ुल्म की मनमानी
    भूख यहां की फसल, साल भर फलती है
    लोग यहां पीते हैं आंखों का पानी
    ये दुनिया, ये दुनिया, हाय हमारी ये दुनिया
    हर सू आग बरसती है
    प्यासी रूह तरसती है
    ये दुनिया…


    वाह मदन मोहन सक्सेना जी !
    दुनिया की ख़ूब ख़बर ली...

    मंगलकामनाओं सहित...


    ♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. हम भी तो इसी दुनिया का हिस्सा हैं .. इसे बदलना है तो खुद को भी बदलना होगा ...

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