Wednesday, May 13, 2015

सपनो में सूरत











सपनो में सूरत

आँखों  में  जो सपने थे सपनों में जो सूरत थी
नजरें जब मिली उनसे बिलकुल बैसी  मूरत थी
जब भी गम मिला मुझको या अंदेशे कुछ पाए हैं
बिठा के पास अपने  उन्होंने अंदेशे मिटाए हैं
उनका साथ पाकर के तो दिल ने ये ही  पाया है
अमाबस की अँधेरी में ज्यों चाँद निकल पाया है
जब से मैं मिला उनसे  दिल को यूँ खिलाया है
अरमां जो भी मेरे थे हकीकत में मिलाया है
बातें करनें जब उनसे  हम उनके पास हैं जाते
चेहरे  पे जो रौनक है उनमें हम फिर खो जाते
ये मजबूरी जो अपनी है  हम उनसे बच नहीं पाते
देखे रूप उनका तो हम बाते कर नहीं पाते
बिबश्ता देखकर मेरी सब कुछ वो  समझ  जाते
आँखों से ही करते हैं अपने दिल की सब बातें


काब्य प्रस्तुति : 
मदन मोहन सक्सेना

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