Wednesday, July 22, 2015

प्रीत






प्रीत

नज़रों ने नज़रों से नजरें मिलायीं
प्यार मुस्कराया और प्रीत मुस्कराई
प्यार के तराने जगे गीत गुनगुनाने लगे
फिर मिलन की ऋतू  आयी भागी तन्हाई

दिल से फिर दिल का करार होने लगा
खुद ही फिर खुद से क्यों प्यार होने लगा
नज़रों ने नज़रों से नजरें मिलायीं
प्यार मुस्कराया और प्रीत मुस्कराई

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

2 comments:

  1. नज़रों से नज़रें मिलती हैं तो प्रेम जाग उठता है ...
    सुन्दर रचना ...

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