Monday, September 28, 2015

मुक्तक (जान)


 


 मुक्तक (जान)

ये जान जान कर जान गया ,ये जान तो मेरी जान नहीं
जिस जान के खातिर  जान है ये, इसमें उस जैसी शान नहीं

जब जान वह   मेरी चलती   है ,रुक जाते हैं चलने बाले
जिस जगह पर उनकी नजर पड़े ,थम जाते हैं  मय के प्याले 


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

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